deepak sharma


अब जाना होगा


समय का चक्र


कह रहा है


बार बार



शायद वहां किसी को ज़रूरत है मेरी


कोई याद कर रहा है मुझे


एक उम्मीद है उसे


मेरे से .......



उस उम्मीद को पुरा करने


उसकी खुशी की खातिर


मुझे जाना होगा


अब तक जिया था अपने लिए


अब उसके किए जीना होगा


मुझे जाना होगा



मुझे जाना होगा


एक हार रहे इंसान के लिए


मुझे जितना है उसे

उसे जितने के लिए

उसे खुशी देने के लिए

मुझे जाना होगा



उसकी ऊँगली पकड़ कर चलना सिखा था

आज उसे संभालने के लिए मुझे जन होगा

अपना फ़र्ज़ निभाना होगा

बहुत सपने है उसके अभी


उन्हें पुरा करवाना है मुझे


इस संकल्प के साथ

मैं कह रहा हूँ मुझे जाना होगा


समय का चक्र कह रहा है

बार बार मुझे

जाना होगा .......................





deepak sharma

आज फ़िर तेरी याद आई

आज मैं फ़िर रोया

याद आए मुझे

तेरे साथ बिताया हुआ हर पल

प्यार में गुजरा हुआ मेरा वो कल


नाम तेरा जब रहता था जुबान पर

तस्वीर तेरी रहती थी इन आंखों में


अब वो तस्वीर दुन्धली हो चली है

तेरा नाम लेते अब जुबान लड़खडाने लगी है


ज़हर तेरी जुदाई का फ़ैल रहा है

कुछ नही जनता ये क्या हो रहा है

शायद तेरी जुदाई फ़ना कर देगी मुझे


अगर नही

तो

तेरे जाने के बाद

सब ख़तम सा होता क्यूँ लग रहा है .........


deepak sharma
लोग कहने लगे हैं इस जंक्शन में दर्द बहुत है ..... तो मैं अब अपनी कविताओं को कुछ दिनों के लिये विराम देता हूँ और..... अब जंक्शन पर आप को एक पैग पटयाला के साथ दर्द नही कुछ रोचक किस्से सुनाता हूँ ..........





एक शाम तब मैं नॉएडा रहा करता था ...दोस्तों ने प्लान बनाया की चलो दिल्ली चलते हैं ...पुछा दिल्ली में कहाँ ...दूसरा बोला चलो सी पि चलो ॥ शाम को वहां कीबात ही कुछ और है सब बोले चलो चलो .......



गाड़ी किसी के पास थी नही मोटर साइकिल हमारे हॉस्टल में काफी थी .... सच कहूँ तो तब दिल्ली जाना अपने लिए बहुत बड़ी बात होती थी ...... गाँव से जो आए थे ......



ठीक है सब निकल पड़े .... दिल्ली आ गए ... जानने की ईशा थी की आख़िर सीपी में ऐसा है क्या ........ जब पहुंचे तो देखा एक अलग सी दुनिया थी सोच से कहीं दूर ......लड़के लड़कियां हाथ थामे गोल गोल गूम रहें हैं अरे भाई सीपी में गोल गोल इमारत हैं न इस लिये लगता है सब गोल घूम रहे हैं ..........साथ जीने मरने की कसमे खा रही है .......



काफी जगह बैठने के लिये बेंच लगा रखे थे ... वहां दुनिया को बूल कर प्रियतमा अपने प्रेमी के कंधे पर सर रख का कुछ बोल रही है ....अगर आप सुनना भी चाहे तो नही सुन सकते .......और प्रेमी आतीजाती लड़कियां की तरफ निहार रहा है जब प्रियतमा ने ये देखा तो वही हुआ ओ होता है लडाई .......उस में ऐसा क्या है ...बताओ ..... मामला बड रहा था ...हम ने कुछ देर उस प्रेमी युगल के मजे लिये और आगे बड गए ......



और दिल्ली वालों की तर्ज पर गोल गूमने लग गए .........

अगला दृश्य जो था वो था फ्राते डार अंग्रेज़ी मैं बात करती वो सड़क किनारे बैठ कर सामान बेचने वाली महिला वो ऐसी अंग्रेजी बोल रही थी जैसी अंग्रेज़ी मैं आज से १० साल बाद बोल लूँ .........

काफी समय गोल गूमाते रहे जानने की कोशिश में के ये सब जा कहाँ रहे हैं जब नही समाज पाए तो घर वापिस चले गए


मैं तो आज तक नही समाज नही पाया दिल्ली वाले कहाँ जा रहे है अगर आप को समज पाए हों तो बताना



deepak sharma



उदास शाम किसी रंग में ढली तो है

तुम तो नहीं हो

दिल में तेरी खलबली तो है

हर कोशिश की है मैंने तुम्हे मानाने की

मेरी कोशिश में कोई कमी तो है

मेरे खुदा तू ही कोई रास्ता दिखा

हर तरफ यह अँधेरा क्यूं है

कहता हूँ अब तुम्हारी ज़रुरत नहीं है

फिर क्यूं मेरी आँखें तुझे डूंडती

आज भी शाम उदास थी तेरे बिना

बैठा रहा सोचता रहा

याद आता है सब

भूल नहीं पता हूँ कुछ

आज फिर जाम लिया

आज फिर दिल को समझाया

सोचा याद नहीं आयोगी तुम

पर ये क्या

तुम बहुत याद आई

कैसे भूलू तुम्हे

अब तुम्हे ही बताना होगा

इस दर्द की दवा

तुम्हे ही कर के जाना होगा

deepak sharma

प्यार तो तुम ने भी किया था
तुम्हे कैसे नींद आती होगी
वो तेरे रोना मेरे कंधे पे सर रख के
याद तो आता होगा

याद है मुझे आज भी
वो तुम्हारा रोना जुदा होने की बात पर
वो तेरा हसना मेरी हर बात पर
वह खुद रूठना
बिना किसी बात पर

वो तेरी चूडियों की शन शन
वो तेरी पायलों की झन झन
आज भी कानो में गूंजती है
तेरा हसना आज भी सुनाई देता है

आज भी अकेले में लगता है
तुम आओगी
पर अब तुम मत आना
अब हौसला नहीं है संभलने का
तेरे साथ चलने का

अब ना चल पाऊँगा प्यार की राह पर
अब न जी पाऊँगा वो प्यार के पल
अब न होगी मोहबत मुज से

अगर कभी प्यार था
उस प्यार की कसम
अब तुम मत आना
deepak sharma
टी. र. पि ये ऐसे शब्द है जिसे हर कोई जानता है आज..........आज भी बुधवार है ......रिसर्च वाले भइया जल्दी आ गए ऑफिस अधिकारी वर्ग के भी दर्शन जल्दी हुए .......रिसर्च सर ने अपना अटेची नुमा कंप्यूटर जिसे वो हमेशा साथ रखते है टेबल पर रखा .....पल्स तेज हो रही थी.......इतने में आवाज़ आई .... क्या रहा सर ...... तो जवाब मिला घर में इन्टरनेट काम नही कर रहा अभी देखता हूँ ..........सब ने थोडी सबर की साँस ली ......इतनी टेंशन तोः एक्साम रिजल्ट की नही होती थी जितनी इस budhwar को होती है ...... खैर ......चहेरे पर तनाव ....माथे पर पसीना .....लगता है रिसर्च सर कोई बुरी खबर सुनाने वाले थे ........बोले मैंने रीच देख ली .......हमने पुछा मतलब .....तो बोले रीच गिरी है ......मतलब जी र पि भी गिरी होगी ...
थोड़े ही इंतज़ार के बाद पता चला काफी डाउन हुई है ............अधिकारी वर्ग तुंरत सक्रिए हो गया ... टिककर में सब ठीक है चेक कर लो खबरें देख लो .......इलाके की खबरें चलाओ ....

और फ़िर शुरू होता है सिलसला की क्यूँ ऐसा हुआ सब ने अपने अपने तर्क देना शुरू कर दिया

मैच चल रहे है ......अब किसे मारें .....कुछ तो करना होगा ....लाइट नही रहती ..... छुट्टियां चल रही हैं....... और भी बहुत कुछ .......

फ़िर शुरू होता है सिलसिला की जनता देखना क्या chahti है
taliban ,pakisatan ,adhayen nakhre
फ़िर थोडी देर charcha गरम रहती है........
सर आते हैं किसी से कुछ नही bola और चले गए
उनके जाते ही फ़िर सारे
कर रहे हैं एक और बुधवार का इंतज़ार .....





deepak sharma
रोज़ खाता हूँ कसम अब न याद करूँगा तुम्हे रोज़ यह कसम तोड़ता हूँ मैं ...

तेरे एहसास में लिपटी हर शे से मुह मोड़ता हूँ
पर फ़िर वहीँ लौट आता हूँ मैं

तेरे ख्यालों में जगता हूँ तेरे एहसासों में सो जाता हूँ मैं

मेरे दीवानेपन की हद तो देख
आज भी जान से जयादा चाहता हूँ तुम्हे

इस कदर टूटा हूँ अब इश्क में
सम्बलने का हौसला भी न रहा

जाना था तो चली जाती
कोई बहाना बना लेती
तुम तो यूँ गई की मैं उमर भर सोचता ही रहा

यह समज नही पाया की खता कहाँ हुई
रो रो के सोचा और सोच के रोता ही रहा
deepak sharma
मेरा प्यार परियों की कहानी जैसा
जो मानो तो सब कुछ था
और न मानो तो कुछ भी नही था

मेरा प्यार परियों के महल जैसा
जिस में सब था पर कुछ भी नही

मेरा प्यार एक परी की तरह खूबसूरत था
जिसे देखा ही नही महसूस भी किया था
मेरे प्यार में परियों सी नजाकत
जो मेरे लिये थी

मेरा प्यार परियों की कहानी था
अगर जीना चाहो तो उमर कम है

और मेरी मोहब्बत भी परी से थी शायद
जिसके बारे में सोचा तो जा सकता है
पर क्या कभी सुना है , कोई परी किसी को मिली है

पर एक उम्मीद बाकी है ,वो परी फ़िर आयेगी
फ़िर मेरी दुनिया महक जायेगी
फ़िर लोग मुज से जलंगे
फ़िर हमरे बारे में लोग बातें करेंगे
मेरा घर सुना नही रहेगा
उसकी पायल की आवाज़ फ़िर मेरे घर में गूंजे गी
उसकी चूडियों की खंन खंन फ़िर मेरे कानों में गूंजे गी
एक उम्मीद है फ़िर एक होने की

पर उम्मीद है परिओं की कहानिया सच नही होती
काश मेरी हो
deepak sharma
एक दोस्त हैं जिन्हें पारकर पेन से ऐतराज़ था , कहते थे अछा लिखने के लिये पारकर पेन की क्या ज़रूरत है ...ठीक ही कहते थे पर सुना है भाई साहब आब रिपोर्टर से प्रोड्यूसर हो गए है सुबह ही उनकी शर्ट में पारकर पेन के दर्शन हुए तो लगा भइया का आधुनिकरण हो गया है ....जब पुछा गया ...आप को ऐतराज़ था इस कलम से तो बोले कुछ नही बस ऐसे ही ले लिया ...........

आज उन्हें नए रूप देखा कल तक जो ब्रा मद करवया करते थे .....आज वो सुबह से शाम तक कीबोर्ड तोड़ते हुए पाए जाते है ....शब्द भी बदल गए है उनके ... कल तक जो शूट पर जाए करते थे खबरें दिया करते थे ...अब वो सुबह आते ही अस्सिग्न्मेंट डेस्क से स्क्रिप्ट मांगते है कोई ख़बर है विशेष लायक ... समय बदल गया है नही भइया अब प्रोड्यूसर हो गए है .......... आब सारा दिन क्रोमा स्टिंग में उलझे रहते है ...

भइया जुर्म की खबरें किया करते थे तो ज़ाहिर है जो विशेष वो करेंगे वो जुर्म की दुनिया से ही होंगी बस ये ही नही बदल है उनकी रोज़ की दिहाडी में .... पर जहा तक मैं सोच पा रहा हूँ वो दिन भी दूर नही है जब वोह कैटरिना के ठुमकोंऔर बिपाशा के अदायों अपर भी लिखते नज़र आयें गे

भइया को प्रोड्यूसर बनने बहुत बधाई ........


ठीक भी है समय के साथ बदलना भी होगा न
deepak sharma
तुम क्यूँ चली गई अकेला कर के मुझे
साथ जीने मरने की कसमे खायी थी

हमेशा साथ रहेंगे कहती थी तुम
फ़िर क्या हुआ ..क्यूँ तनहा कर गई तुम

माना मैं ग़लत था समजने में भूल हुई
एक बार नही कई बार हुई

लाखों बार रूठे थे मान भी गए थे हम
कभी तुम ने मनाया कभी मैंने मनाया तुमे

जुदा होके न जी पाएंगे
न आपको ना आपकी यादों को भूल पाएंगे

जब लगे की आ सकती हो मेरे पास
साथ रहने का फ़िर हो एहसास

चली आना सोचना मत
वही खड़ा पाओगी
जहाँ छोड़ गई थी ..................
deepak sharma
आवाज़ एक acha ब्लॉग है कस्बा ब्लॉग से इस के बारे में पता चला था to मैं भी आवाज़ के साथ जुड़ गया समय लगे तो ज़रूर एक बार देखना अगर आप हिन्दी साहित्य में रूचि रखते है तोः ख़ुद को नही रोक पाएंगे
अरुण मित्तल अद्भुत" जी की एक ग़ज़ल बहुत पसंद आई

कौन कहता है गम नहीं है रे
आँख ही बस ये नम नहीं है रे

चाहता है तू आदमी होना
आरजू ये भी कम नहीं है रे

मैं हूँ, बस मैं ही, सिर्फ मैं ही हूँ
एक भी शब्द "हम" नहीं है रे

थी दुआ जिसकी बेअसर उसकी
बद्दुआ में भी दम नहीं है रे

वो मेरा हमसफ़र तो होगा पर
वो मेरा हमकदम नहीं है रे

दे और छीन ले आँसू
इससे बढ़कर सितम नहीं है रे

खुद को 'अद्भुत' मैं मान लूं शायर
मुझको इतना भी भ्रम नहीं है रे

अरुण मित्तल अद्भुत
बहुत बढ़िया
deepak sharma
इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं

जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं



गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है

हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है



जवानी का आलम गधों के लिये है

रसिया, ये बालम गधों के लिये है



ये दिल्ली, ये पालम गधों के लिये है

संसार सालम गधों के लिये है



पिलाए जा साकी, पिलाए जा डट के

विहस्की के मटके पै मटके पै मटके



दुनियां को अब भूलना चाहता हूं

गधों की तरह झूमना चाहता हूं



घोडों को मिलती नहीं घास देखो

गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो



यहाँ आदमी की कहां कब बनी है

दुनियां गधों के लिये ही बनी है



गलियों में डोले वो कच्चा गधा है

कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है



खेतों में दीखे वो फसली गधा है

माइक पे चीखे वो असली गधा है



मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं

की पिनक में कहां बह गया हूं



मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था

wo ठर्रा था, भीतर जो अटका हुआ था





deepak sharma

जिंदगी तुने मुझे दिया क्या है

कुछ न समज पाया की तेरी रजा क्या है

मैंने तो हर रोज़ की थी एक दुआ .....

उस दुआ का असर न हुआ तो मेरी खता क्या है

रोज़ मरता हूँ जीने और जिंदा रहने के बीच

कहते हैं लोग न हुआ करो उदास

तुम ही बताओ की रास्ता क्या है

वो जिसे चाहा था सब से जादा वो भी चला गया

अब हौसला क्या है .................

deepak sharma
पाश या यूँ कहे विद्रोही कवि पर विद्रोह किसके लिये था और क्यों था कभी मौका लगे तो ज़रूर जानने की कोशिश करना .....मैं तो उनकी लिखी हुई एक कविता आप के लिए पोस्ट करूँगा ..............
हम तोह लडेंगे उदास मौसम के लिए
हम लडेंगे साथी गुलाम इचा के लिए

हम चुनेगे साथी जिंदगी के टुकड़े
हथोडा अब भी चलता है ,उदास निहाई पर

हल अब भी चलते है चीखतीहुई धरती पर
ये काम हमारा नही बनता ,प्रशन चलता है
प्रशनो के कंधे पर चढ़ कर हम लडेंगे साथी

कतल हुए ज़ज्बों की कसम खा कर
बुजी ही नज़रों की कसम खाकर

अधूरी है ...........................
deepak sharma
खंडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही
अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही

कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप
जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही

हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया
हमपर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही

मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा
या यूँ कहो कि बर्क़ की दहशत नहीं रही

हमको पता नहीं था हमें अब पता चला
इस मुल्क में हमारी हक़ूमत नहीं रही

कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे
कुछ दुशमनों से वैसी अदावत नहीं रही

हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग
रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही

सीने में ज़िन्दगी के अलामात हैं अभी
गो ज़िन्दगी की कोई ज़रूरत नहीं रही
deepak sharma
अब और खुद को भूला बेकरार क्या करता
मैं जान-बूझकर पत्थर से प्यार क्या करता

मुझे जो छोड़ गया अजनबी-सा राहों में
मैं उम्र भर उसी का इंतज़ार क्या
करता
जिसे पता ही नहीं कुछ भी जान की कीमत
उसी पे ज़िंदगी अपनी निसार क्या करता
वो एक पल में कई रंग बदल लेता है
मैं ऐसे आदमी का एतबार क्या करता
ज़रा-सी बात पर शोरिश उठा दिया जिसने
उसी को ज़िंदगी का राज़दार क्या करता
कभी असर ही नहीं आह का हुआ जिस पर
मैं इल्तिजा उसी से बार-बार क्या करता
ग़मों ने चैन से मुझको कभी जीने न दिया
चंद लमहात को दिल का करार क्या करता
पता है मुझको, यकीनन है ज़िंदगी फानी
मैं ज़िंदगी से प्यार बेशुमार क्या करता
हुए हैं एक ज़माने से जिगर के टुकड़े
मैं उसको और भला तार-तार क्या करता

तमाम उम्र ख़िज़ाँ में गुज़र गई मेरी
कोई कहे कि अब लेकर बहार क्या करता!
deepak sharma
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम,
जुए के पत्ते सा
मैं अभी अनिश्चित हूँ
मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं
कोपलें उग रही हैं,
पत्तियाँ झड़ रही हैं,
मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,
लड़ता हुआ
नयी राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ
अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,
मेरे बाज़ू टूट गए,
मेरे चरणों में आँधियों के समूह ठहर गए,
मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,
या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं
तो मुझे पराजित मत मानना,
समझना
तब और भी बड़े पैमाने पर
मेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा होगा
मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँ
एक बार और
शक्ति आज़माने को
धूल में खो जाने या कुछ हो जाने को
मचल रही होंगी ।
एक और अवसर की प्रतीक्षा में
मन की क़न्दीलें जल रही होंगी ।
ये जो फफोले तलुओं मे दीख रहे हैं
ये मुझको उकसाते हैं
पिण्डलियों की उभरी हुई नसें
मुझ पर व्यंग्य करती हैं ।
मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँ
क़सम देती हैं
कुछ हो अब, तय है
मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है,
पत्थरों के सीने में
प्रतिध्वनि जगाते हुए
परिचित उन राहों में एक बार
विजय-गीत गाते हुए जाना है
जिनमें मैं हार चुका हूँ
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम
मैं अभी अनिश्चित हूँ
deepak sharma

रोज़ सुबह जब हॉस्पिटल जाता हू तो इतना सब देखता हू समज ही आता की कैसे ख़तम किया जाए इसे ...पाँच साल के बचे से ले कर ६५ साल के उस बुडे लाचार शक्स तक सब को देखा है .... और..... क्या सकता हूँ डॉक्टर तो नही हूँ ना .......
रोज़ की तरह आज भी गया था हॉस्पिटल आज एक बूडे और लाचार से मुलाकात हुई ....
उन्हें ब्रेन का कैंसर है ..... ऑपरेशन हो चुका है वील चेयर पर थी ...रेडिएशन का वेट कर रहीं थी .......सब लोग बात कर रहे थे ..वो चुप थी ...अचानक से एक आवाज़ आई "मेरी टांगों ने काम करना बंध कर दिया है मैं क्या करूँ ".........
मैं सुन सा रह गया ,आँखों में आंसू आ गए इस से पहले की मैं कुछ बोलता वहां बैठे सभी लोग उनकी सुप्पोर्ट में उतर आए .....
एक ने कहा बाकी सब के लिये बहुत जी लिये अपने लिये जीना सीखो .....आप चाहे ४ कदम चलो पर चलने की कोशिश करो ख़ुद ही करना होगा .....जो हम को करना है वो तो करना पड़ेगा ना ....बाकि तो डॉक्टर कर ही रहे है......कोई उनको योग की शिक्षा देने लगा कोई .....नुस्खे बताने लगा ......
आप जाकीं नही करेंगे उसके अन्दर इतनी शक्ति आ गई की वो वहां बैठे बैठे ही योग करने लगी .... और कह रहीं थी ऐसे ही करना है ना .... फ़िर मेरे जाने का टाइम हो गया था मुझे जाना था पर बहुत खुशी हुई .....

कुछ टिप्स
रोज़ आवला खाएं ( १ मुरबे वाला )
खाने के बाद कोशिश करे थोड़ा चलने की
जूस रोज़ इ गिलास लें (डब्बे वाला )

बाकी आगली पोस्ट में
deepak sharma

ब्लॉगर का इस फोटो से कोई सम्बन्ध नही है गूगल की देन है .....