उदास शाम किसी रंग में ढली तो है
तुम तो नहीं हो
दिल में तेरी खलबली तो है
हर कोशिश की है मैंने तुम्हे मानाने की
मेरी कोशिश में कोई कमी तो है
मेरे खुदा तू ही कोई रास्ता दिखा
हर तरफ यह अँधेरा क्यूं है
कहता हूँ अब तुम्हारी ज़रुरत नहीं है
फिर क्यूं मेरी आँखें तुझे डूंडती
आज भी शाम उदास थी तेरे बिना
बैठा रहा सोचता रहा
याद आता है सब
भूल नहीं पता हूँ कुछ
आज फिर जाम लिया
आज फिर दिल को समझाया
सोचा याद नहीं आयोगी तुम
पर ये क्या
तुम बहुत याद आई
कैसे भूलू तुम्हे
अब तुम्हे ही बताना होगा
इस दर्द की दवा
तुम्हे ही कर के जाना होगा
प्रियतमा की याद ही तो उदास बना देती है शामे..........बहुत ही सुन्दर ....पढकर मेरी शाम आज उदास सी हो गई ..........इस दर्द की वाकई मे कोई दवा है क्या?
केवल रचना की नही , मै तो उसके साथ लगी तसवीर की भी कायल हो गयी ..!
इस चित्र को कभी ज़रूर अपने fiber art के सहारे एक भित्ती चित्र में तब्दील करना चाहूँगी ...
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Mere any blog links in blog pe milhee jayenge...aapka intezaar rahegaa...aapki ek rachnaa jo kabhi tippanee ke roopme mujhe bhejee thee, mere "kavita" blog pe sanjo ke rakhee hai..!
आप ऐसे ही कविताये लिखा करूँ बहुत दर्द है इन कविताओं मैं