रोज़ सुबह जब हॉस्पिटल जाता हू तो इतना सब देखता हू समज ही आता की कैसे ख़तम किया जाए इसे ...पाँच साल के बचे से ले कर ६५ साल के उस बुडे लाचार शक्स तक सब को देखा है .... और..... क्या सकता हूँ डॉक्टर तो नही हूँ ना .......
रोज़ की तरह आज भी गया था हॉस्पिटल आज एक बूडे और लाचार से मुलाकात हुई ....
उन्हें ब्रेन का कैंसर है ..... ऑपरेशन हो चुका है वील चेयर पर थी ...रेडिएशन का वेट कर रहीं थी .......सब लोग बात कर रहे थे ..वो चुप थी ...अचानक से एक आवाज़ आई "मेरी टांगों ने काम करना बंध कर दिया है मैं क्या करूँ ".........
मैं सुन सा रह गया ,आँखों में आंसू आ गए इस से पहले की मैं कुछ बोलता वहां बैठे सभी लोग उनकी सुप्पोर्ट में उतर आए .....
एक ने कहा बाकी सब के लिये बहुत जी लिये अपने लिये जीना सीखो .....आप चाहे ४ कदम चलो पर चलने की कोशिश करो ख़ुद ही करना होगा .....जो हम को करना है वो तो करना पड़ेगा ना ....बाकि तो डॉक्टर कर ही रहे है......कोई उनको योग की शिक्षा देने लगा कोई .....नुस्खे बताने लगा ......
आप जाकीं नही करेंगे उसके अन्दर इतनी शक्ति आ गई की वो वहां बैठे बैठे ही योग करने लगी .... और कह रहीं थी ऐसे ही करना है ना .... फ़िर मेरे जाने का टाइम हो गया था मुझे जाना था पर बहुत खुशी हुई .....
कुछ टिप्स
रोज़ आवला खाएं ( १ मुरबे वाला )
खाने के बाद कोशिश करे थोड़ा चलने की
जूस रोज़ इ गिलास लें (डब्बे वाला )
बाकी आगली पोस्ट में
जीने के लिए उम्मीद बहुत जरूरी है. डॉक्टर तो अपना काम करेंगे ही, कुछ जीने की इच्छा रखने वाले भी तो करें.