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deepak sharma
तुम क्यूँ चली गई अकेला कर के मुझे
साथ जीने मरने की कसमे खायी थी

हमेशा साथ रहेंगे कहती थी तुम
फ़िर क्या हुआ ..क्यूँ तनहा कर गई तुम

माना मैं ग़लत था समजने में भूल हुई
एक बार नही कई बार हुई

लाखों बार रूठे थे मान भी गए थे हम
कभी तुम ने मनाया कभी मैंने मनाया तुमे

जुदा होके न जी पाएंगे
न आपको ना आपकी यादों को भूल पाएंगे

जब लगे की आ सकती हो मेरे पास
साथ रहने का फ़िर हो एहसास

चली आना सोचना मत
वही खड़ा पाओगी
जहाँ छोड़ गई थी ..................
2 Responses
  1. manas mishra Says:

    काफी शिद्दतों के बाद कोई नगमा सुना है।
    दर्दे ए दिल को समझा है गहरायी में उतरकर।


  2. shama Says:

    Phir ekbar dardkee karah se nikale alfaaz..!

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