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deepak sharma
कुछ पन्ने अद्खुले रहने दो
कुछ राज़ दफ़न रहने दो
इनमे यादें हैं उनकी ,इनमे सांसे हैं मेरी
मेरी जिंदगी भर की कमाई है यह
कुछ और नही मांगता तुज से में ऐ मालिक
यह तो मेरे है इने मेरा बस मेरा रहने दो
कईं शामें हैं इस में मेरी
कुछ हसीं लहमे है उनके
कुछ बातें है कही unkahi सी
ik रिश्ता है इन panno में
जो हो के भी i था ही नही …..
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deepak sharma
Ek shaqs ko aaj rote hue dekha maine
Us ko aaj tadapte hue dekha maine
Dekha tha jis shaqs ko hamesha bheed ke sath
Aaj us saqs ko bheed mein akela dekha maine
Poocha bhai kya hua kuch na bola
Aankhen bhar ayi uski
Dard se bhara tha shayad uska dil
Kuch kehna chaha us ne pa keh nahi paya who
Us shaqs ko aaj tadap tadap kar marte hue dekha maine ……
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deepak sharma
एक कहानी और वो कड़ी चावल ... दो दोस्त थे साथ काम करते थे एक ह ऑफिस में दोनों जर्नलिस्ट एक दिन दोनों शाम को जल्दी ऑफिस से जल्दी फ्री हो गए करें क्या ..... घर के पास के मॉल तोह इतना घूम लिये थे की अब वह्याँ जाने का मन नही करता ...रस्ते भर ऑटो में यही सोचते हुए घर की और जा रहे थे ..... भाईसाहब को ऑटो में बैठते ही ऐसे नींद आती थी मानो उन्हें सपनो का बिस्तर मिल गया हो .........कोई नही ..... तय किया आज हम विण्डो शौपिंग करेंगे राजोरी गार्डन में ..... ऑटो रुका तो हम घूमने लगे लगभग हर दुकान में गए होंगे हम कभी शर्ट फेन के देखि तो कबी टी शर्ट पर कुछ समाज मैं नही आया .........
उस दिन लगभग हम ने ६ जानते ऑफिस से निकलने के बात उस मार्केट में वास्ते केए और लिया कुछ भी नही ......फ़िर सोचा अब हम बुक लिखेंगे "
हाउ तू किल यौर टाइम "
जब पैसे हैं तो रेस्तुरांत वाला घर का एड्रेस सुन कर ही खाना बेज देता था १ बुट्टर पनीर मसाला और ७ बुट्टर रोटी सिरके वाला प्याज़ जादा .............
और जब पैसे नही हो तोह भाई बोलता था कड़ी चावल १० मं मनें बन जायेंगे ......
कड़ी चावल का किस्सा नेक्स्ट पोस्ट में
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deepak sharma
वो हाथ सर से जो उठा
एक पल में सब ख़तम सा होता लगा
अभी बाकी था बहुत कुछ
अभी उन्हें करना था काफी कुछ
क्यूँ ऐसा हुआ
समज नही पाया ही
कोई भी
कुछ पल तो यूँ भी लगा
सब ठीक है सब ठीक होगा
अभी उठेंगे
कहेंगे
क्या हुआ क्यूँ रो रहे हो
पर ऐसा नही हुआ
एक पल में सब ख़तम सा हो गया
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deepak sharma
आप सब के बीच
फ़िर आऊंगा ................
जिंदगी ने कुछ मोड़ ऐसा ले लिया की .........
जल्द आऊंगा
दीपक शर्मा
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deepak sharma

अब जाना होगा
समय का चक्र
कह रहा है
बार बार
शायद वहां किसी को ज़रूरत है मेरी
कोई याद कर रहा है मुझे
एक उम्मीद है उसे
मेरे से .......
उस उम्मीद को पुरा करने
उसकी खुशी की खातिर
मुझे जाना होगा
अब तक जिया था अपने लिए
अब उसके किए जीना होगा
मुझे जाना होगा
मुझे जाना होगा
एक हार रहे इंसान के लिए
मुझे जितना है उसे
उसे जितने के लिए
उसे खुशी देने के लिए
मुझे जाना होगा
उसकी ऊँगली पकड़ कर चलना सिखा था
आज उसे संभालने के लिए मुझे जन होगा
अपना फ़र्ज़ निभाना होगा
बहुत सपने है उसके अभी
उन्हें पुरा करवाना है मुझे
इस संकल्प के साथ
मैं कह रहा हूँ मुझे जाना होगा
समय का चक्र कह रहा है
बार बार मुझे
जाना होगा .......................
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deepak sharma

आज फ़िर तेरी याद आई
आज मैं फ़िर रोया
याद आए मुझे
तेरे साथ बिताया हुआ हर पल
प्यार में गुजरा हुआ मेरा वो कल
नाम तेरा जब रहता था जुबान पर
तस्वीर तेरी रहती थी इन आंखों में
अब वो तस्वीर दुन्धली हो चली है
तेरा नाम लेते अब जुबान लड़खडाने लगी है
ज़हर तेरी जुदाई का फ़ैल रहा है
कुछ नही जनता ये क्या हो रहा है
शायद तेरी जुदाई फ़ना कर देगी मुझे
अगर नही
तो
तेरे जाने के बाद
सब ख़तम सा होता क्यूँ लग रहा है .........
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deepak sharma
लोग कहने लगे हैं इस जंक्शन में दर्द बहुत है ..... तो मैं अब अपनी कविताओं को कुछ दिनों के लिये विराम देता हूँ
और..... अब जंक्शन पर आप को एक पैग पटयाला के साथ दर्द
नही कुछ रोचक किस्से सुनाता हूँ ..........
एक शाम तब मैं नॉएडा रहा करता था ...दोस्तों ने प्लान बनाया की चलो दिल्ली चलते हैं ...पुछा दिल्ली में कहाँ ...दूसरा बोला चलो सी पि चलो ॥ शाम को वहां कीबात ही कुछ और है सब बोले चलो चलो .......
गाड़ी किसी के पास थी नही मोटर साइकिल हमारे हॉस्टल में काफी थी .... सच कहूँ तो तब दिल्ली जाना अपने लिए बहुत बड़ी बात होती थी ...... गाँव से
जो आए थे ......
ठीक है सब निकल पड़े .... दिल्ली आ गए ... जानने की ईशा थी की आख़िर सीपी में ऐसा है क्या ........ जब पहुंचे तो देखा एक अलग सी दुनिया थी सोच से कहीं दूर ......लड़के लड़कियां हाथ थामे गोल गोल गूम
रहें हैं अरे भाई सीपी में गोल गोल इमारत हैं न इस
लिये लगता है सब गोल घूम रहे हैं ..........साथ जीने मरने की कसमे खा रही है .......
काफी जगह बैठने के लिये बेंच लगा रखे थे ... वहां दुनिया को बूल कर प्रियतमा अपने प्रेमी के कंधे पर सर रख का कुछ बोल रही है ....अगर आप सुनना भी चाहे तो नही सुन सकते .......और प्रेमी आतीजाती लड़कियां की तरफ निहार रहा है जब प्रियतमा ने ये देखा तो वही हुआ ओ होता है लडाई .......उस में ऐसा क्या है ...बताओ ..... मामला बड रहा था ...हम ने कुछ देर उस प्रेमी युगल के मजे लिये और आगे बड गए ......
और दिल्ली वालों की तर्ज पर गोल गूमने लग गए .........
अगला दृश्य जो था वो था फ्राते डार अंग्रेज़ी मैं बात करती वो सड़क किनारे बैठ कर सामान बेचने वाली महिला वो ऐसी अंग्रेजी बोल रही थी जैसी अंग्रेज़ी मैं आज से १० साल बाद बोल लूँ .........
काफी समय गोल
गूमाते रहे जानने की कोशिश में के ये सब जा कहाँ रहे हैं जब नही समाज पाए तो घर वापिस चले गए
मैं तो आज तक नही समाज नही पाया दिल्ली वाले कहाँ जा रहे है अगर आप को समज पाए हों तो बताना
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deepak sharma

उदास शाम किसी रंग में ढली तो है
तुम तो नहीं हो
दिल में तेरी खलबली तो है
हर कोशिश की है मैंने तुम्हे मानाने की
मेरी कोशिश में कोई कमी तो है
मेरे खुदा तू ही कोई रास्ता दिखा
हर तरफ यह अँधेरा क्यूं है
कहता हूँ अब तुम्हारी ज़रुरत नहीं है
फिर क्यूं मेरी आँखें तुझे डूंडती
आज भी शाम उदास थी तेरे बिना
बैठा रहा सोचता रहा
याद आता है सब
भूल नहीं पता हूँ कुछ
आज फिर जाम लिया
आज फिर दिल को समझाया
सोचा याद नहीं आयोगी तुम
पर ये क्या
तुम बहुत याद आई
कैसे भूलू तुम्हे
अब तुम्हे ही बताना होगा
इस दर्द की दवा
तुम्हे ही कर के जाना होगा
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deepak sharma

प्यार तो तुम ने भी किया था
तुम्हे कैसे नींद आती होगी
वो तेरे रोना मेरे कंधे पे सर रख के
याद तो आता होगा
याद है मुझे आज भी
वो तुम्हारा रोना जुदा होने की बात पर
वो तेरा हसना मेरी हर बात पर
वह खुद रूठना
बिना किसी बात पर
वो तेरी चूडियों की शन शन
वो तेरी पायलों की झन झन
आज भी कानो में गूंजती है
तेरा हसना आज भी सुनाई देता है
आज भी अकेले में लगता है
तुम आओगी
पर अब तुम मत आना
अब हौसला नहीं है संभलने का
तेरे साथ चलने का
अब ना चल पाऊँगा प्यार की राह पर
अब न जी पाऊँगा वो प्यार के पल
अब न होगी मोहबत मुज से
अगर कभी प्यार था
उस प्यार की कसम
अब तुम मत आना